By Kumudini
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Book-स्पर्श
काव्य खंड
रैदास
रैदास पहले पद का आशय (व्याख्या/भावार्थ): प्रभु जी ,अब हमारे मन में आपके नाम रट लग गई है, वह कैसे छूट सकती है ?
प्रभु जी,तुम चंदन हो और मैं पानी हूं। तुम में और मुझ में वही संबंध स्थापित हो चुका है जो चंदन और पानी में होता है। जैसे चंदन के संपर्क में रहने से पानी में उसकी सुगंध फैल जाती है, उसी प्रकार मेरे तन-मन में तुम्हारे प्रेम के सुगंध व्याप्त हो गई है।
प्रभु जी, तुम आकाश में छाए काले बादलों के समान हो। मैं जंगल में नाचने वाला मोर हूं। जैसे वर्षा बरसाते बादलों को देखकर मोर खुशी से नाचने लगते हैं, उसी प्रकार मैं आपके दर्शन पाकर खुशी में भावमुग्ध हो उठता हूं।
प्रभु जी, जैसे चकोर पक्षी सदा अपने प्रेम पात्र चंद्रमा की ओर ताकते रहता है, उसी प्रकार मैं भी सदा तुम्हारा प्रेम पाने के लिए तरसता रहता हूं। तुम चंद्रमा हो तो मैं चकोर हूं।
प्रभु जी, तुम दीपक हो, मैं बाती हूं। मैं बाती के समान सदा तुम्हारे प्रेम में जलता रहता हूं। तुम्हारे प्रेम की चमक दिन-रात मेरे मन में समाई रहती है।
प्रभु जी,तुम मोती हो, मैं उसके पिरोया हुआ धागा हूं। तुम मोती के समान उज्जवल, पवित्र और सुंदर हो। मेरा तन-मन तुम्हारी ही कांति से ओतप्रोत है।
प्रभु जी,तुम्हारा और मेरा मिलन सोने और सुहागे के मिलन के समान पवित्र है। जैसे सुहागे के संपर्क में आकर सोना और अधिक खरा हो जाता है, उसी प्रकार मैं तुम्हारे संपर्क में रहने से सुद्ध - बुद्ध हो जाता हूं।
हे प्रभु जी! तुम मेरे स्वामी हो, मैं तुम्हारा दास हूं, सेवक हूं। मैं रविदास तुम्हारे चरणों में इसी प्रकार की दास्य भक्ति अर्पित करता हूं।
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